श्रीमद् भागवद गीता को हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है. गीता का वाचन भगवान् श्री कृष्ण नें स्वयं अपने मुख से किया है एवं इसे महर्षि वेदव्यास जी ने लिखा है. गीता में 18 अध्याय एवं 700 श्लोक हैं. गीता महाभारत के ही भीष्म पर्व का एक अंग है. गीता महोत्सव को गीता जयंती भी कहा जाता है.
यहाँ हम गीता महोत्सव पर निबंध के साथ साथ यह भी जानेंगे कि गीता जयंती कब और क्यों मनाई जाती है, गीता का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है एवं गीता की उत्पत्ति तथा इतिहास आदि.
गीता महोत्सव कब और क्यों मनाया जाता है?
गीता जयंती अर्थात गीता महोत्सव प्रतिवर्ष हिन्दू पंचांग अर्थात कैलेंडर के हिसाब से मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है एवं यह उत्पन्ना एकादशी के बाद आती है.
गीता महाभारत ग्रन्थ का ही एक हिस्सा है. कुरुक्षेत्र के कौरव एवं पांडवों के युद्ध में कुंती पुत्र अर्जुन अपने ही विपक्ष में अपने भाई, गुरु एवं अन्य स्वजनों को देखकर विचलित होने लगते हैं एवं पराजय स्वीकार करने का निर्णय लेने लगते हैं तब भगवान् श्री कृष्ण जी स्वयं अपने मुख से अर्जुन को गीता का उपदेश देते हैं.
इसी दिन को भागवत गीता के जन्मदिवस के रूप में गीता महोत्सव मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार गीता की उत्पत्ति कलयुग प्रारम्भ होने के 30 वर्ष पहले हुई थी.
गीता जयंती 2021 में कब है?
इस वर्ष 14 दिसम्बर 2021 को गीता जयंती मनाई जायेगी. इस वर्ष गीता जयंती की 5158वीं वर्षगाठ मनाई जायेगी अर्थात 5158 वर्ष पहले इसी तिथि को श्री कृष्ण जी के मुख से गीता का जन्म हुआ था.
गीता महोत्सव पर निबंध
आज के दिन ही जब कौरव एवं पांडव एक दुसरे के समक्ष शत्रु बनकर युद्ध करने खड़े थे तो अपने ही स्वजनों को अपने समक्ष खड़ा देख अर्जुन विचलित हो गये थे तब भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया इसीलिए गीता के जन्मदिवस के रूप में गीता महोत्सव मनाया जाता है.
श्रीमद भागवद गीता को हिन्दू धर्म में सर्वश्रेष्ट ग्रन्थ माना जाता है. हालांकि गीता में किसी धर्म अथवा जाति विशेष को लेकर वर्णन नहीं है. बल्कि यह सार्वभौमिक ग्रन्थ है.
गीता की विशेषता कुछ शब्दों में वर्णन कर पाना नामुमकिन है. गीता यह सिखाती है एक व्यक्ति को अपना जीवन कैंसे व्यतीत करना चाहिए, उसका व्यक्तित्व कैंसा होना चाहिए, जीवन में आने वाली मुश्किलों का सामना कैंसे करना चाहिए आदि.
कहते हैं कि जो भी व्यक्ति गीता का अध्ययन सह्रदय से कर लेता है उसके सारे नेत्र खुल जाते हैं एवं उसके लिए जीवन आसान हो जाता है क्योंकि गीता में सारी समस्याओं का समाधान है. हमारे यहाँ बहुत से विद्वान् हुए जिन्होंने गीता का अध्ययन किया एवं उसे अपनी जीवनशैली बनाया.
शिक्षा का विस्तार होने के बाद गीता के महत्त्व को समझते हुए इसे बहुत से घरों में पढ़ा जाने लगा है एवं इसकी लोकप्रियता में काफी विस्तार हुआ है. गीता सभी जाति एवं धर्म के लोगों को पढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें धर्म अथवा जाति विशेष को न लेकर मनुष्य के धर्म एवं कर्म को महत्त्व दिया गया है.
गीता को आचरण में लाकर अपने व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है एवं एक बेहतर मनुष्य बनकर बेहतर जीवन जिया जा सकता है. गीता के इन्हीं महत्वों को लोगों में बनाये रखने एवं नए लोगों को प्रेरित करने हेतु गीता जयंती मनाई जाती है.
गीता की उत्पत्ति एवं इतिहास
श्रीमद भागवद गीता की उत्पत्ति श्री कृष्ण के मुख से हुई थी जिसे महर्षि वेदव्यास जी ने श्लोक के रूप में ग्रन्थ में वर्णित किया है. यह 5158 वर्ष पुरानी बात है. कौरव पांडवों के युद्ध में अर्जुन को कृष्ण जी ने गीता का ज्ञान दिया था.
गीता का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है?
भागवद गीता ग्रन्थ मुख्य रूप से मनुष्य के जीवनकाल से जुड़ा हुआ है. गीता का सही पर्याय कहा जाए तो जीवन जीने की कला है. गीता में मनुष्य के जीवन में आने वाले सुख-दुःख, विपत्तियाँ, कर्म, नौकरी, शिक्षा आदि सारा ज्ञान दिया हुआ है.
आज के वर्तमान युग के लोग भोग, सुख, विलाश एवं काम वासना के लालच में डूबा हुआ है. वहीँ गीता में वर्णित अदिव्य ज्ञान से मनुष्य भय, द्वेष, राग, इर्ष्या एवं क्रोध से हमेशा के लिए मुक्ति पा सकता है. गीता में मन को वश में करने के सरल उपाय बताये गए हैं.
भागवद गीता के 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में इतना बहुमूल्य ज्ञान दिया हुआ है कि मनुष्य उनका आचरण अंतरात्मा से कर ले उसके जीवन जीने के तरीके में परिवर्तन आ जाएगा एवं जीवन बहुत ही आसान हो जाएगा.
गीता में मुख्य रूप से कर्म को महत्त्व दिया गया है. गीता के अनुसार मनुष्य को अपने कर्म में ध्यान देना चाहिए एवं फल ईश्वर के ऊपर छोड़ देना चाहिए. अर्थात मनुष्य फल की कामना ही नहीं करेगा एवं कर्मप्रधान रहेगा तो जीवन स्वतः आसान हो जाएगा.
गीता का ज्ञान हासिल कर लेने के बाद मनुष्य चिंता एवं तनावों से मुक्त हो जाता है एवं उसके जीवन में रह जाता है तो सिर्फ आनंद. गीता के ज्ञान से मनुष्य को स्वयं इतना आत्मबोध हो जाता है एवं वह आत्मनिर्धारण कर सकता है कि उसके जीवन जीने का उद्देश्य क्या है. अर्थात गीता मनुष्य को जीवन जीने की सही राह तो दिखाती ही है साथ समस्त विकारों से भी मुक्ति दिलाती है.
गीता से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
गीता हमारे जीवन के मार्ग में आने वाली विपत्तियों के लिए हमें प्रशस्त करती है. हमारी सुख दुःख अथवा अन्य परिस्थिति में हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए इससे अवगत कराती है.
गीता हमें सिखाती है कि हमें अपनें कर्म एवं धर्म पर ध्यान देना चाहिए. भागवत गीता को पढ़ने से मन शांत होता है. गीता हमारे व्यावहारिक जीवन का दार्शनिक आधार है. गीता में बताया गया है कि बिना कर्म किये मनुष्य के शरीर का निर्वाह भी असंभव है एवं कर्म से ही व्यक्ति का संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है.
स्वभावतः आमतौर पर किसी के कर्म स्वतः ही धार्मिक नहीं होते है. गीता की ज्ञान प्राप्ति के बाद मनुष्य के मन एवं बुद्धि में प्रभाव पड़ने के साथ दैनिक जीवन में भी परिवर्तन आता है. विभिन्न परिस्थितियों से लड़ने अथवा उनका सामना करने का ज्ञान मनुष्य को हो जाता है.
गीता के अनुसार ज्ञान से पवित्र और कोई वस्तु नहीं है. सारे वेद पुराणों में सर्वश्रेष्ठ गीता को माना गया है. प्रत्येक व्यक्ति को इस पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन करना चाहिए. सच मानिए आपका जीवन बदल जायेगा.